बेमर्जी से जरूरी अर्जियाें की अनदेखी कर दी जाए, व्यस्तता की आड़ में जब फरियादें अनसुनी रह जाए, तो मन ही मन तय करती हूँ कि अब नहीं जोडू़ंगी हाथ, किसी देव और भूदेव को,डबडबायी आँखों से, भर आए कंठ से,नहीं रखूँगी कभी अपनी जायज बात। किंतु जिसने जन्म दिया है,और,जिसको जन्म दिया है, जब इन पर बन आती है,अकड़ सारी भूल जाती है, सर खुद-ब-खुद झुक जाते हैं,मिन्नत में बेहिचक ये हाथ किसी के आगे जुड़ जाते हैं,अपनी कथनी से मुड़ जाते हैं। बेमर्जी से जरूरी अर्जियाें की अनदेखी कर दी जाए, व्यस्तता की आड़ में जब फरियादें अनसुनी रह जाए, तो मन ही मन तय करती हूँ कि अब नहीं जोडू़ंगी हाथ, किसी देव और भूदेव को, डबडबायी आँखों से,