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हवा के पन्नों पर कुछ अल्फाज़ उभर आए है तुम भले न ह

हवा के पन्नों पर कुछ अल्फाज़ उभर आए है
तुम भले न हो पास मगर,साथ तेरे साए है,
चाहत है बुलबुल जैसी यकीन है
तभी तो ये गुल मुस्कुराए है,
सन्नाटों में भी लग रहा है बज रहे घुंघरू
तभी तो मेरे अधर  भी मुस्कुराए है,
आवाज है मन का मनमीत हो तुम
फूलों पर सजी ओस की बूंदे
स्नेह तेरे मस्तक पर मेरे छाए है।।

©Ashok Verma "Hamdard"
  हवा के पन्नों पर

हवा के पन्नों पर #कविता

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