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पुस्l कहानी : त्याग और सम्पर्ण की अनूठी मिसाल भारत

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कहानी : त्याग और सम्पर्ण की अनूठी मिसाल भारतीयो का जीवन
द्वारा- आशा खन्ना
यह बात उस समय की है जब सिकन्दर विश्व को जीत लेने का सपना लेकर भारत आया था। सिकन्दर का जन्म पेला में हुआ था। सिकन्दर का पूरा नाम एलेक्ज़ेंडर मेसेडोनियन था ।

तक्षशिला के राजा आंभीक के आमन्त्रण पर सिकन्दर कुछ दिनों के लिए तक्षशिला में ठहर गया । तक्षशिला एक प्राचीन भारतीय शहर था जो एक उच्च शिक्षा का एक प्रसिद्ध हिन्दू प्राचीन संस्थान था। जो अब उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान में है।

एक दिन सांयकाल सिकन्दर  गांव की तरफ निकल गया। वहाँ एक पंचायत हो रही थी। सिकन्दर पंचो का न्याय देखने वहाँ ठहर गया। पंचायत की कारवाई शुरू हुई। वादी (व्यक्ति) बोला- मैंने प्रतिवादी से एक खेत खरीदा था। हल जोतते समय जमीन के नीचे मुझे एक सोने के सिक्को से भरा घड़ा मिला। मैंने केवल जमीन खरीदी थी, उसके नीचे की सम्पत्ति नहीं। इन मुद्राओं पर प्रतिवादी का अधिकार हैं, मेरा नहीं, किन्तु वह मुहरें लेने से इन्कार कर रहा है। कृपा कर न्याय किया जाए और प्रतिवादी से स्वर्ण मुद्राए लेने को कहा जाए।'

आज्ञा पाकर प्रतिवादी बोला'- “मैने जमीन बेच दी। उसमें उगने वाली फसल की तरह उसकी अंतस्थ सम्पत्ति से भी मेरा कोई सरोकार नहीं। उन मुहरों पर मेरा कोई अधिकार नही। वादी से कहा जाए कि वह सारा स्वर्ण अपने पास रखे।" बडी देर विचार-विमर्श के बाद सरपंच ने फैसला दिया। सरपंच बोला "बादी के विवाह योग्य लड़की और प्रतिवादी के विवाह योग्य लड़का है। वादी अपनी लड़की का विवाह प्रतिवादी के लड़के के साथ कर दे और वह सारा स्वर्ण वर-कन्या को उनके जीवन-विकास के लिए प्रदान कर दे। वादी-प्रतिवादी ने पंचायत का फैसला मान लिया और लड़के लड़की का विवाह कर सारा स्वर्ण उनको दे दिया।

सिकन्दर चुपचाप यह सारी कारवाई देखता रहा। भारतयों का त्यागपूर्ण जीवन देखकर उसकी आत्मा कह उठी-यह एक गरीब ग्रामीणजन हैं, जो पाए, हुए स्वर्ण को भी अपने पास रखना नहीं चाहते और एक तू है राजा होकर भी दूसरों की धन दौलत छीनने के लिए रक्तपात करता फिर रहा है । धिक्कार है तेरे लोभ और तेरी तृष्ण को ।

भारतीयों की त्याग और सम्पर्ण की भावना ऐसी है जो कि एक अति महात्वाकांक्षी राजा को आत्म ग्लानि करने पर मजबूर कर देती है। धन्य है भारतवासी और धन्य है उनकी सम्पर्ण की भावना ।

©Nature Lover Asha Khanna #airforce भारतीयों का त्याग और समर्पण
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कहानी : त्याग और सम्पर्ण की अनूठी मिसाल भारतीयो का जीवन
द्वारा- आशा खन्ना
यह बात उस समय की है जब सिकन्दर विश्व को जीत लेने का सपना लेकर भारत आया था। सिकन्दर का जन्म पेला में हुआ था। सिकन्दर का पूरा नाम एलेक्ज़ेंडर मेसेडोनियन था ।

तक्षशिला के राजा आंभीक के आमन्त्रण पर सिकन्दर कुछ दिनों के लिए तक्षशिला में ठहर गया । तक्षशिला एक प्राचीन भारतीय शहर था जो एक उच्च शिक्षा का एक प्रसिद्ध हिन्दू प्राचीन संस्थान था। जो अब उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान में है।

एक दिन सांयकाल सिकन्दर  गांव की तरफ निकल गया। वहाँ एक पंचायत हो रही थी। सिकन्दर पंचो का न्याय देखने वहाँ ठहर गया। पंचायत की कारवाई शुरू हुई। वादी (व्यक्ति) बोला- मैंने प्रतिवादी से एक खेत खरीदा था। हल जोतते समय जमीन के नीचे मुझे एक सोने के सिक्को से भरा घड़ा मिला। मैंने केवल जमीन खरीदी थी, उसके नीचे की सम्पत्ति नहीं। इन मुद्राओं पर प्रतिवादी का अधिकार हैं, मेरा नहीं, किन्तु वह मुहरें लेने से इन्कार कर रहा है। कृपा कर न्याय किया जाए और प्रतिवादी से स्वर्ण मुद्राए लेने को कहा जाए।'

आज्ञा पाकर प्रतिवादी बोला'- “मैने जमीन बेच दी। उसमें उगने वाली फसल की तरह उसकी अंतस्थ सम्पत्ति से भी मेरा कोई सरोकार नहीं। उन मुहरों पर मेरा कोई अधिकार नही। वादी से कहा जाए कि वह सारा स्वर्ण अपने पास रखे।" बडी देर विचार-विमर्श के बाद सरपंच ने फैसला दिया। सरपंच बोला "बादी के विवाह योग्य लड़की और प्रतिवादी के विवाह योग्य लड़का है। वादी अपनी लड़की का विवाह प्रतिवादी के लड़के के साथ कर दे और वह सारा स्वर्ण वर-कन्या को उनके जीवन-विकास के लिए प्रदान कर दे। वादी-प्रतिवादी ने पंचायत का फैसला मान लिया और लड़के लड़की का विवाह कर सारा स्वर्ण उनको दे दिया।

सिकन्दर चुपचाप यह सारी कारवाई देखता रहा। भारतयों का त्यागपूर्ण जीवन देखकर उसकी आत्मा कह उठी-यह एक गरीब ग्रामीणजन हैं, जो पाए, हुए स्वर्ण को भी अपने पास रखना नहीं चाहते और एक तू है राजा होकर भी दूसरों की धन दौलत छीनने के लिए रक्तपात करता फिर रहा है । धिक्कार है तेरे लोभ और तेरी तृष्ण को ।

भारतीयों की त्याग और सम्पर्ण की भावना ऐसी है जो कि एक अति महात्वाकांक्षी राजा को आत्म ग्लानि करने पर मजबूर कर देती है। धन्य है भारतवासी और धन्य है उनकी सम्पर्ण की भावना ।

©Nature Lover Asha Khanna #airforce भारतीयों का त्याग और समर्पण