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मैने सब कुछ उलझता देखा है एक चेहरा गुम होता देखा ह

मैने सब कुछ उलझता देखा है
एक चेहरा गुम होता देखा है
अक्स खोया है उसने अपना
बस मैंने उसको जब जब रोते देखा है

उल्हानो से परे उसे ऊपर से हंसते देखा है
मैंने एक जमाना पहले उसको सोते देखा है
दर्द में भी उसको खुशी की चिमनी जलते देखा है।
 मैने एक चेहरा गुम होते देखा है

ख्वाबों की दुनिया से परे असलियत में जीते देखा है
धक्का देकर गाड़ी को मुस्कुरा कर खिंचते देखा है
हां मैंने सब कुछ उलझते देखा है


तपती धूप में नंगे पांव उसे चलते देखा है
मुफलिसी में भी उसे रईस जैसा मददगार बनता देखा है
अक्स खो के भी खुद का मुक्कदर बनते देखा है
हां मैंने उसे सपनो में भी काम करते देखा है।।

©aditi jain
  #उलझन#उलझन  jameel Khan Senty Poet Natkhat Krishna AK Haryanvi Chouhan Saab