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कलुषित हैं मेरा भी मैला आपका भी मन हैं अट्टहास करत

कलुषित हैं मेरा भी
मैला आपका भी मन हैं
अट्टहास करता वहाँ
बैठा एक दशानन हैं। 

काम, क्रोध, मोह, लोभ
घृणा, मद, छल, द्वेष
इन विकृतियों का चोला ओढ़े
बैठा हैं एक लंकेश। 

इस दहन, दहन करो
पनप रही इस लंका का
भ्रमित करती, राह डिगाती
मन में उठती शंका का,
दहन करो विचार का
कारण हैं जो विकार का
दहन करो मैल मन का
मन में बैठे उस रावण का।।

©Pawan Shah
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