सोच की महीनकंघी मे अचानक विचार की एक नन्ही सी जूं आ निकली और इतिहास की अंगूठी का एक मानक टूट कर जमीन पर आ गिरा. था जिसे मैंने विश्वास के कागज़ पर धर दिया. तभी मैंने देखा समय के होंठ फड़फड़ाये.थे और उसने सम्पूर्ण सभ्यता को अपनी बाहो मे भर लिया. था तब कही जाकर मेरी आँख खुली थी और मै खोई हुई सभ्यता को समय से छीन कर वापस लाने के प्रयत्न करने लगा ©Parasram Arora खोई हुई सभ्यता #chains