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कटु-वाणी।। किस कर दीप बुझाऊँ बोलो, जो सुबह रही रौ

 कटु-वाणी।।

किस कर दीप बुझाऊँ बोलो,
जो सुबह रही रौशन ही नहीं।
एक फूंक मार दूँ भी मैं कैसे,
जो दुबक रहा यौवन ही कहीं।

अज़ान श्लोक वाणी है महज़,
 कटु-वाणी।।

किस कर दीप बुझाऊँ बोलो,
जो सुबह रही रौशन ही नहीं।
एक फूंक मार दूँ भी मैं कैसे,
जो दुबक रहा यौवन ही कहीं।

अज़ान श्लोक वाणी है महज़,

कटु-वाणी।। किस कर दीप बुझाऊँ बोलो, जो सुबह रही रौशन ही नहीं। एक फूंक मार दूँ भी मैं कैसे, जो दुबक रहा यौवन ही कहीं। अज़ान श्लोक वाणी है महज़, #Poetry #kavita #nojotophoto