असंख्य धवल शुभ्र लहरे उठ रही थी सागर की सतह पर और आकाशदीप का भव्य उजाला भी पसरा हुआ था सब तरफ फिर भी मेरी किश्ती को सही दिशा का इशारा नहीं मिल रहा था क्योंकि मै सागर की विस्तीर्णता मे सर पर मंडराती किसी संभावित प्रलय का तांडव देख रहा था महाप्रलय.......