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गोरों से छिनी आज़ादी, काले दिल के ग़ुलाम रहे, ये धर्

गोरों से छिनी आज़ादी, काले दिल के ग़ुलाम रहे,
ये धर्मों के सौदागर, करते क़त्ले आम रहे।
मासूमों के हत्यारे जा बैठे हैं अब तख़्तों पर,
इज़्ज़त ख़ुदकी लुटाके मुफ़लिस झूले हैं दरख़्तों पर।
किसकी है ये स्वतंत्रता, कौन यहाँ स्वतंत्र है,
ज़ातपात बाज़ार है, समानता षड्यंत्र है।
रविकुमार गोरों से छिनी आज़ादी, काले दिल के ग़ुलाम रहे,
ये धर्मों के सौदागर, करते क़त्ले आम रहे।
मासूमों के हत्यारे जा बैठे हैं अब तख़्तों पर,
इज़्ज़त ख़ुदकी लुटाके मुफ़लिस झूले हैं दरख़्तों पर।
किसकी है ये स्वतंत्रता, कौन यहाँ स्वतंत्र है,
ज़ातपात बाज़ार है, समानता षड्यंत्र है।
रविकुमार
गोरों से छिनी आज़ादी, काले दिल के ग़ुलाम रहे,
ये धर्मों के सौदागर, करते क़त्ले आम रहे।
मासूमों के हत्यारे जा बैठे हैं अब तख़्तों पर,
इज़्ज़त ख़ुदकी लुटाके मुफ़लिस झूले हैं दरख़्तों पर।
किसकी है ये स्वतंत्रता, कौन यहाँ स्वतंत्र है,
ज़ातपात बाज़ार है, समानता षड्यंत्र है।
रविकुमार गोरों से छिनी आज़ादी, काले दिल के ग़ुलाम रहे,
ये धर्मों के सौदागर, करते क़त्ले आम रहे।
मासूमों के हत्यारे जा बैठे हैं अब तख़्तों पर,
इज़्ज़त ख़ुदकी लुटाके मुफ़लिस झूले हैं दरख़्तों पर।
किसकी है ये स्वतंत्रता, कौन यहाँ स्वतंत्र है,
ज़ातपात बाज़ार है, समानता षड्यंत्र है।
रविकुमार