क्षण भर यह जीवन....... रेत के घरोदों को है , बार - बार बिखरना। अमृत से जीवन को , बार-बार संभालो।। लहरों जैसा है जीवन , लहराता ही रहेगा। साहिल जैसे किनारे , दिखातें ही रहेगें।। उम्मीदों का पंछी , पंख फड़फड़ाता रहेगा। उफनते हुए ज्वारों में , गोते लगाता रहेगा।। रेत के घरोदों को है , बार - बार बिखरना। पल भर के जीवन को , बार-बार संभालो।। खुली किताब सी ए जीवन खुल कर रहेगा। राज़ छुपाने की तिजोरी , कभी न बनेगी।। विरासत में तुमको जो कुछ भी हो मिलेगा। मुकम्मल उसे सौंपने की जिम्मेदारी रहेगी।। रेत के घरोदों को है , बार - बार बिखरना। क्षण भर यह जीवन बार - बार संभालो।। बिन पूछे "राय' की भरमार मिलती रहेगी। तराशी हुई हुनर तुम्हें कहीं भी न मिलेगी।। "श्रेष्ठ" उम्मीदों का रहबर कहीं न मिलेगा।। पसीनों में लतपत तुम्हें यश कीर्ति मिलेगी। रेत के घरोदों को है , बार - बार बिखरना। क्षण भर यह जीवन , बार - बार संभालो।। यशवंत राय श्रेष्ठ ( दुबौलि गोरखपुर ) प्रमाणिक व मौलिक (27/08/2020) क्षण भर यह जीवन....... रेत के घरोदों को है , बार - बार बिखरना। अमृत से जीवन को , बार-बार संभालो।। लहरों जैसा है जीवन , लहराता ही रहेगा। साहिल जैसे किनारे , दिखातें ही रहेगें।। उम्मीदों का पंछी , पंख फड़फड़ाता रहेगा।