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जिस शहर में हम आज भटक रहे हैं वहां घर होगा एक रोज़

जिस शहर में हम आज भटक रहे हैं
वहां घर होगा एक रोज़ हमारा
जिन सड़कों पर हम अनजान से हैं
उन सड़कों पर हमारे कदमों की छाप होगी
जिन ख्वाबों को आंखों में लेकर चले हैं
उन ख्वाबों की हकीकत जिंदा होगी एक रोज़
यह डर, यह दुःख यह मुहिम कुछ करने की
यह सब इंतज़ार है उस दिन का 
जब हमारा सूरज निकलेगा 
कई काली रातों के बाद।।
आमिर "एक अंजान शायर"

©Amir 'Ek Anjaan Shayar'
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