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सोचती हूं ना उलझू ख़ुद में सुलझा लू खुद को पर हर

सोचती हूं ना उलझू ख़ुद में
सुलझा लू खुद को
पर 
हर बार उलझ जाते हैं
कभी संभालते तो कभी फिसल जाते है

मायने जिंदगी के सीखे
फिर भी घबरा जाते है

कदम उठते हैं 
बढ़ने को 
मंजिले देख क्यों घबरा जाते है

ख़ुद की  पहचान से
मुकर जाते हैं
दूसरे में यू खोए
की खुद को 
ही भुलाए हैं

©kanchan Yadav
  #खुद_की_तलाश