पढ़ रहा था शब्दों में छुपे शब्द कुछ अक्षर तो कुछ वाक्य तो कभी दो पक्तियों के बीच का भावार्थ चल रहा था वह , बढ़ रहा था वह और गुजर रहा था लम्हा, दिन, महीना, और साल बुन रहा था कई सुंदर ख्वाबों का जाल कभी हताश तो कभी परेशान फिर भी लड़ रहा था , जूझ रहा था, परिस्थियों से, व्यवस्थाओं से खुद के हिस्से का जहर टुकड़ों में पी रहा था किस्मत थी या हिम्मत जो टूट जाती थी ज़िन्दगी न जाने कितने दांव पेंच सिखाती थी वह जो फूल बनने की चाहत में था कोयले से हीरा बन जाने की ख्वाहिश में था मगर समाज के नस्त्रों ने कुछ ऐसे तराशा बना दिया शूल , उसको हुई बहुत निराशा पर क्या करता हार जाता? #सफलताऔरविफलता