अपनों को देख आँख जो,मलते हुए मिले ! अपने ही कई,अपने को छलते हुए मिले !! कुछ हमसफ़र जो राह में,चलते हुए मिले ! बुझते हुए चराग़ भी,जलते हुए मिले !! वो तो भला हो वक्त का,जो सीख दे गया, अपना वही जो अपनों से,घुलते हुए मिले !! चूल्हा है ग़म की आँच है,उसमें उबलता दिल, अरमाँ भी इसके साथ,उबलते हुए मिले !! साया नहीं था रहगुज़र में,बैठते कहाँ, ये धूप उफ़! ये जिस्म,पिघलते हुए मिले !! ✍️✍️ रवि श्रीवास्तव ©Ravi Srivastava #Hope