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Tunnel गुनाह था ये मेरा, चाहा था उनको मैंने रब से

Tunnel गुनाह था ये मेरा, चाहा था उनको मैंने रब से भी ज्यादा।
रब भी खफा था मुझसे, मेरी चाहत जो थी उनसे ज्यादा।
सोचा था कुछ पल गुजरेगा मेरा उनकी आगोश मे,
आंचल होगी उनकी नर्म छांव मेरी 
होंगी मुलाकाते और होंगी कुछ बातें उनसे
ना जाने कैसे टूटी वी सपनों कि इमारतें
ना जाने कैसे अजनबी हो गए वो रास्ते
अब सेहरा में भटकता हूं 
खुद को किया हूं प्यासा
हूं कुछ डरा सा हूं कुछ सेहमा सा 
हूं कुछ अब अधूरा सा ,
हूं मै कुछ , हूं मै क्या 
यहीं सोचता हुआ फिरता हू बैचन सा #OpenPoetry
Tunnel गुनाह था ये मेरा, चाहा था उनको मैंने रब से भी ज्यादा।
रब भी खफा था मुझसे, मेरी चाहत जो थी उनसे ज्यादा।
सोचा था कुछ पल गुजरेगा मेरा उनकी आगोश मे,
आंचल होगी उनकी नर्म छांव मेरी 
होंगी मुलाकाते और होंगी कुछ बातें उनसे
ना जाने कैसे टूटी वी सपनों कि इमारतें
ना जाने कैसे अजनबी हो गए वो रास्ते
अब सेहरा में भटकता हूं 
खुद को किया हूं प्यासा
हूं कुछ डरा सा हूं कुछ सेहमा सा 
हूं कुछ अब अधूरा सा ,
हूं मै कुछ , हूं मै क्या 
यहीं सोचता हुआ फिरता हू बैचन सा #OpenPoetry