बूढ़े माँ बाप और बचपन (भाग 2) एक उम्र बिता दी उसने जिसे जवां करने में पल भी नही लगा उन्हें उसे जुदा करने में न जाने ये कैसी आफत पाल ली उसने लगे है भूल कर उसे उनको खुदा करने में सूखे पत्ते पतझड़ में पेड़ से टूट जाते है ज़िन्दगी की इस डगर पर अपने छूट जाते है उसकी क्या फिक्र करेंगे अब वो इस मोड़ पर जो बचपन मे छोटी छोटी बातों पर रूठ जाते है बड़े मसरूफ रहते है बच्चे उसके अपनी खुशी में उसे तो मजा आया खुदकुसी में मौत भी मयस्सर नही होती अब तो कितना वक्त लगेगा अभी उसके दफन होने में कभी मेरा मेरा कह कर लड़ते थे अब खबर तक नही लेते जब बूढ़े हो जाते है माँ बाप बच्चे उनकी कदर तक नही करते विनीत कुमार मित्तल budhe maa baap aur bachpan