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मैं देखता हूँ ज़ब भी धरती को शिखर से और शिखर से

मैं  देखता हूँ ज़ब भी  धरती को शिखर से
और शिखर से  धरती को
मेरी योग साधना  आररम्भ हो जाती  है

ज़ब भी मैं  देखता हूं  मन को शरीर से
और  शरीर को मन से .. और ज़ब  शरीर  मन से जुड़ने
लगता है
तब मेरी  ध्यान साधना शुरू  हो जाती है

ज़ब भी मेरे दुख मे सुख  की आवक होती है
या फिर सुख मे दुख की  दस्तक होने लगती है
तब  मेरी  इच्छा  स्थित प्रग्यता को साधने की
हो  जाती है

हर पल ज़ब याद "उसकी " बनी रहती  हैऔर  हर
कंण मे  "उसकी "  उपस्तिथि. महसूस  होने
लगती है
तब ये   भक्ति भाव मे की गई प्रार्थना मेरी
पुकार  बन  कर  ईश्वर का  आवाहन  करने
लगतीं  है

©Parasram Arora आराधना......
मैं  देखता हूँ ज़ब भी  धरती को शिखर से
और शिखर से  धरती को
मेरी योग साधना  आररम्भ हो जाती  है

ज़ब भी मैं  देखता हूं  मन को शरीर से
और  शरीर को मन से .. और ज़ब  शरीर  मन से जुड़ने
लगता है
तब मेरी  ध्यान साधना शुरू  हो जाती है

ज़ब भी मेरे दुख मे सुख  की आवक होती है
या फिर सुख मे दुख की  दस्तक होने लगती है
तब  मेरी  इच्छा  स्थित प्रग्यता को साधने की
हो  जाती है

हर पल ज़ब याद "उसकी " बनी रहती  हैऔर  हर
कंण मे  "उसकी "  उपस्तिथि. महसूस  होने
लगती है
तब ये   भक्ति भाव मे की गई प्रार्थना मेरी
पुकार  बन  कर  ईश्वर का  आवाहन  करने
लगतीं  है

©Parasram Arora आराधना......