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ओ री सखी काहे बरसत नयना चंचल चित चहुं ओर निहारे बि

ओ री सखी काहे बरसत नयना
चंचल चित चहुं ओर निहारे
बिखरी लट सुलझे न सवारे
निकसत मुख से न बयना
ओ री सखी.....
की तोरे कंत करत मनमानी
या सौतन की प्रीत समानी
काहे नहीं तोरा चयना
ओ री सखी.....
नैहर सासुर एक समाना
रोवत आवत रोवत जाना
"सूर्य" सो सब कुछ कहना
ओ री सखी.....

©R K Mishra " सूर्य "
  #सखी  Rama Goswami Ƈђɇҭnᴀ $ Ðuвєɏ Rimjhim PRIYANK SHRIVASTAVA 'अरमान' Kirti Pandey