स्मृतियों के बेकल हंस, कभी कभी विचलित हो कर विचरण करते हैं, अतीत के आँगन में स्मृतियों की सौंधी सी सुगंध झकझोर देती है मन मस्तिष्क को विह्वल मन और तड़प उठता है असंख्य टीसें एक साथ सूईयाँ चुभोती हैं स्मृति किरणें, अंधकवन में भटकाते हुए शून्य में ले जाती हैं जहां से लौट पाना असंभव हो जाता है। अतीत, मेरे हृदयपटल पर चिपका है जाले की तरह जिसमें, अनगिनत पीड़ाओं ने अपना अधिकार जमा रखा है। अतीत की स्मृतियां विस्मृत नहीं होती मन से। स्मृतियों के हर पन्ने पर मेरे जीवन की कई कहानियां मुद्रित हैं जिनमें सुखद कम और दु:खद अधिक। रिपुदमन झा "पिनाकी" धनबाद (झारखंड) स्वरचित एवं मौलिक ©Ripudaman Jha Pinaki #स्मृतियां