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कल शब पारा माइनस में था ओस की बूंदे ठंड में जकड़ के

कल शब पारा माइनस में था
ओस की बूंदे ठंड में जकड़ के 
सफ़ेद सी होके रह जाती थी
हवाओं से परत-दर-परत पाला बैठ गया आके
सरसौं के पीले पीले फूलों पे
फूल घुटन से ठंड से कुमलाह गए काले पड़ गए

मेरी रात भी हिज्र में कुछ ऐसे ही बीती
तेरी यादों की परतें मेरे जेहन में जमती रही
जुदाई के जाड़े ने आह! को लब तक 
आने से पहले ही जमा के पत्थर कर दिया
अब सुबह मैं तमाम परते कुरचता हूँ ज़ेहन की
ये रूह शब भर में दर्द से अलसाई हुई है
कितनी चीखें है जो एक किरण के इंतज़ार में
बह निकलने के लिए बैठी है मुझ में
ऐसे में मिल जाए मेरी रूह को एक बोसा
रूह फिर से अंगड़ाई ले खिल उठे
नई सुबह के अख़बार की तरह 
मुझ से आकर मिल जाओ ना

©Abanish
  #abanish