Nojoto: Largest Storytelling Platform

लिख रहा हूँ जिदंगी को आखों से बहते आसूं से कलम का

लिख रहा हूँ जिदंगी को
आखों से बहते आसूं से
कलम का स्याही बनाकर
कागज कि जरुरत नहीं है मुझे
आज आसमान भी है मेरे साथ
गम के बादल का चादर बनाकर  ।

जल तो रहा हूँ हर रोज
अब ओर किया तूम मुझपर
कहर बरपावोगे
खाक मैं कहां आग लगती है
हल्के से हवा में वो उड जाता है
उसे क्या रोक पाउगे।

मुखोटा कबतक बदलोगे
आखिर इनसान हैं हम
भनक तो लग जाता है
आसमान नहीं खिसकती
कभी सर के उपर से
हां जमीन पेर के निचे से खिसकता है।

©Tafizul Sambalpuri #मुखोटा
लिख रहा हूँ जिदंगी को
आखों से बहते आसूं से
कलम का स्याही बनाकर
कागज कि जरुरत नहीं है मुझे
आज आसमान भी है मेरे साथ
गम के बादल का चादर बनाकर  ।

जल तो रहा हूँ हर रोज
अब ओर किया तूम मुझपर
कहर बरपावोगे
खाक मैं कहां आग लगती है
हल्के से हवा में वो उड जाता है
उसे क्या रोक पाउगे।

मुखोटा कबतक बदलोगे
आखिर इनसान हैं हम
भनक तो लग जाता है
आसमान नहीं खिसकती
कभी सर के उपर से
हां जमीन पेर के निचे से खिसकता है।

©Tafizul Sambalpuri #मुखोटा