काजल की कोठरी है दुनिया मुसाफ़िर खाना, बेदाग़ निकलना है तो माया में मत भुलाना, लालच की चासनी में मन लोभवश फँसा है, छल छद्म त्याग करके निर्लिप्त दिन बिताना, जीवन है एक अवसर पहचान कर स्वयं की, जाना है छोड़कर सब मन को यही सिखाना, दिल में ख़ुदा का घर है इस बात को समझना, निज स्वार्थ के लिए दिल जग का नहीं दुखाना, परमार्थ से बड़ा सुख कुछ भी नहीं जगत में, अँधियारा मिटे मन का ख़ुद का दीया जलाना, सुमिरन,भजन,व सेवा यह मंत्र मुदित मन से, जपना हृदय से जीवन अपना सफल बनाना, जो भी मिला धरा से अनुदान तुम्हें 'गुंजन', अक्ष्क्षुण धरोहर को वापस है छोड़ जाना, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' ©Shashi Bhushan Mishra #वापस है छोड़ जाना#