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shashibhushanmis9249
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Shashi Bhushan Mishra

I am a science graduate from UP. currently working in an Indian multinational pharma company as Sr RBM. I love poetry. I write poems and Gazals.

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Shashi Bhushan Mishra

उष्णता  भरती लबों पर  ताजगी  अभिप्राय की,  
कड़क सी अहले सुबह बस एक प्याली चाय की,  

नींद  से  बोझिल  नयन  थे  स्वप्न में   खोये  हुए,  
तभी  सुमधुर  मंद  स्वर में  किसी ने आवाज़ दी,  

कर  तरंगित  शांत जल में  भर गई एहसास वो,  
मोहिनी मन प्राण विस्मित कर गई निरुपाय की,  

छूटती   कैसे  लगी  जो  लत  अठारह  साल से,  
बस ज़रा आहट हुई और कदम ने फिर धाय की,  

कैसी चाहत का नशा ये किस तरह का प्यार है,  
देखती  आंखें  रहीं  पर  दिलजले  ने   हाय की,  

चुस्कियां    लेते    हुए    संवाद  कायम   हो गये,  
मन की गांठें घुल गई आशा जगी अब न्याय की,  
  ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
          प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra #एक प्याली चाय की#

#एक प्याली चाय की# #शायरी

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Shashi Bhushan Mishra

तुम्हें पता अधिकारों का है 
भुला   दिया  कर्तव्यों  को,
कैसे   कोई   भूल  पाएगा
दिये    हुए   वक्तव्यों   को,

तौर  तरीके  बदले  सबने 
अपने  उच्च  विचारों   से,
बदल  सकेगा  कोई कैसे 
लोगों   के   मंतव्यो   को,

मेले में  प्रवास  करने को 
संगम  हुआ  सितारों का,
कहां से आए  किसे पता 
लौटेंगे  फिर  गंतव्यों को,

कर्म प्रधान  धरा है इसमें
फल पर  कोई  जोर नहीं,
बदल  सकेगा  कौन यहां
जीवन के  भवतव्यों  को,

ज्ञान ध्यान आनन्द प्रेम है 
विषय हृदय का ही 'गुंजन',
द्रोणाचार्य मिले हर युग में 
श्रद्धावान  एकलव्यों  को, 
-शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
    प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra #श्रद्दावान एकलव्यों को#

#श्रद्दावान एकलव्यों को# #कविता

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Shashi Bhushan Mishra

New Year 2024-25 अब न कोई फलां ढिमका,
हो चुका अवसान दिन का,

मिट  गई  हस्ती तो  देखा,
बच न पाया  एक तिनका,

मिल  गयी  मिट्टी से मिट्टी,
है अमर  अवशेष किनका,

नाद  अनहद  मधुर धुन में,
बोल मीठे तिनक धिन का,

चुका  पाया  कौन  जग  में,
मां-पिता और गुरु ऋण का,

जल  प्रलय  से   बचे  सृष्टि,
किया धारण  रूप हिम का,

गया  खाली   हाथ  'गुंजन',
रह  गया अरमान  दिल का,
 --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
       प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra #हो चुका अवसान दिन का#

#हो चुका अवसान दिन का# #कविता

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Shashi Bhushan Mishra

a-person-standing-on-a-beach-at-sunset आदत  से   मज़बूर  हुआ,
गिरा तो  चकनाचूर  हुआ,

प्रेम की संकरी गलियों में,
ख़ुद से  कितना  दूर हुआ,

गफ़लत में  फुंसी  समझा,
बढ़ा  तो फ़िर नासूर हुआ,

जिस घर में था अंधियारा,
जला  दीप   पुरनूर  हुआ,

चढ़ा नशा जब भक्ति का,
आठों  याम  सुरूर  हुआ,

मंज़िल मिली मुसाफ़िर से,
ग़म  दिल से क़ाफूर हुआ,

देख  घटाओं   की  शोखी,
'गुंजन' हृदय   मयूर  हुआ,
 -शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
        प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra #'गुंजन' हृदय मयूर हुआ#

#'गुंजन' हृदय मयूर हुआ# #शायरी

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Shashi Bhushan Mishra

New Year 2024-25 दिल की किताब आंखों से पढ़ने को बेक़रार,
नज़रें मिलाकर देख लो तुम मुझसे एकबार,

दिल में रहा  क़ायम ये भ्रम  है प्यार उन्हें भी,
नज़रें  बचाकर   देखते   देखा  है  कई  बार,

सूरजमुखी  सा  आफ़ताब  देख  खिल उठे,
हर सुब्ह  रहा करता है  इस कद्र  इंतज़ार,

फ़ुरसत  में  किसी  रात  चांद  डूबता  नहीं,
मिलती तो मांग लाते हम भी चांदनी उधार,

हुस्न-ओ-अदा पर फ़िदा हुए  राह के पत्थर,
रुक जाए मुसाफ़िर भी राह चलते कई बार,

महफूज़ मेरा चैन-ओ-सुकूं उनकी फ़ज़ल से,
बख़्शी ख़ुदा ने  दुआ की दौलत भी बेशुमार,

दीदार-ए-हुस्न   मुकम्मल  होता नहीं कभी,
होती है नुमाइश में झलक गोया क़िस्त बार,

फूलों  के  ईर्द-गिर्द  सुनूं  भ्रमर का 'गुंजन',
दिल पर लगा दिया खाली है का इश्तिहार,
    ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' 
            प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra #दिल पर लगा दिया#

#दिल पर लगा दिया# #कविता

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Shashi Bhushan Mishra

सही-सही  दो  टूक कहा,
दर्दे  दिल  को  हूक कहा,

जली दूध से जुबां हमारी,
पियो छाछ भी फूंक कहा,

ज़ुल्म देखकर भी चुप बैठे,
अभिभावक को मूक कहा,

कोयल की मीठी बोली पर,
पीड़ा  को  भी  कूक कहा,

सीख नहीं पाए अतीत से,
ग़लती  को भी  चूक कहा,

इन्सां  की  बदहाली देखी,
बक्से   को   संदूक  कहा,

'गुंजन' हुई मुहब्बत अंधी,
गदहे  को   माशूक़  कहा,
-शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
     प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra #सही-सही दो टूक कहा#

#सही-सही दो टूक कहा# #कविता

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Shashi Bhushan Mishra

चलो अच्छा है कोई रोकने वाला नहीं है,  
सफ़र तन्हा है कोई टोकने वाला नहीं है,  

जुवाँ खामोश भी रखूँ तो कागज़ बोलता है,  
डरें क्यों अब यहाँ कोई भौंकने वाला नहीं है,  

उन्हें गुमान उनकी हर रज़ा मक़बूल होगी,  
फ़लक पर कोई कीचड़ फेंकने वाला नहीं है,  

मैं तन्हा हूँ मुकम्मल साथ मेरी शायरी है,  
बुझा चूल्हा है  रोटी सेंकने वाला नहीं है,  

वो बन ठनकर निकलते हैं बड़ी मसरूफियत से,  
है दर्द-ए-दिल बहुत कोई देखने वाला नहीं है,  

जो मन में आता है बेखौफ़ बोलता हूँ अब,  
शुक्र है अब मेरे मुँह पर कोई ताला नहीं है,  

वही लिखता हूँ जो महसूस मैं करता हूँ 'गुंजन',  
हमारे दिल में नफ़रत का कोई जाला नहीं है,  
      ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
               प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra #चलो अच्छा है कोई रोकने वाला नहीं है#

#चलो अच्छा है कोई रोकने वाला नहीं है# #कविता

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Shashi Bhushan Mishra

आज, कल, परसों पे  टलता जा रहा,
साईं पल-पल दिन निकलता जा रहा,

तैरने   वाले   गये   उस  पार   कबके,
कुछ  किनारे   हाथ  मलता   जा रहा,

भूलने   वाले   भुला    बैठे   अदावत,
टीसने   वाले   को   खलता   जा रहा,

जम   गई   है    बर्फ़   सी   संवेदनाएं,
वेदना   से    ग़म   पिघलता   जा रहा,

कोई   बच  पाया  नहीं  इस  काल से,
समय  की  चक्की में  दलता  जा रहा,

संभलकर  ही   कर्म  करना  जगत में,
भाग्य  बनकर  बीज  फलता  जा रहा,

ज्ञान दीपक  से मिटे  अंधियार 'गुंजन',
हृदय  में  सुख-शांति  पलता  जा रहा,
  ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
           प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra #दिन निकलता जा रहा#

#दिन निकलता जा रहा# #कविता

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Shashi Bhushan Mishra

राह सँभलकर चलने वाले, 
मौसम देख  बदलने  वाले,

कहाँ गए  घुंघराले  बादल, 
छत को देख मचलने वाले, 

हुए कारवाँ में सब शामिल, 
बीच  राह  में  छलने  वाले,

बचके चलना राह मुसाफ़िर, 
आसपास  हैं  जलने  वाले,

अभी चमकते आसमान में, 
सूरज   इनके  ढ़लने  वाले,

पिंजरे में  ज्यों  क़ैद परिन्दा,
लालच देख  फिसलने वाले,

एकदिन मिट जायेंगे 'गुंजन', 
आदत  नहीं   बदलने  वाले,
 --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
       समस्तीपुर बिहार

©Shashi Bhushan Mishra #राह संभलकर चलने वाले#

#राह संभलकर चलने वाले# #कविता

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Shashi Bhushan Mishra

दीप जलता है सदन में,
अंधेरा है व्याप्त मन में,

चलाता है श्वास सबका,
वही रक्षक  है  भुवन में,

प्रेम और विश्वास से ही,
प्रकट होते  ईश क्षण में,

कर रहे  गुणगान  सारे,
धरा से लेकर  गगन में,

सिंधु से जलश्रोत लेता,
वही भरता नीर घन में,

जागता है साथ हरपल,
साथ रहता है  सयन में,

हृदय में है व्याप्त गुंजन,
बसा ले उसको नयन में,
-शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
      प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra #दीप जलता है सदन में#

#दीप जलता है सदन में# #कविता

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