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हर इक दिल पे हैं दाग़ नाकामियों के निशाँ दे गया



हर इक दिल पे हैं दाग़ नाकामियों के 
निशाँ दे गया बे-निशाँ कैसे कैसे 

बहार आ के क़ुदरत की गुलशन में देखो 
खिलाता है गुल बाग़बाँ कैसे कैसे 

उठाए हैं मज्नूँ ने लैला की ख़ातिर 
शुतुर-ग़मज़ा-ए-सार-बाँ कैसे कैसे 

ख़ुश-इक़बाल क्या सर-ज़मीन-ए-सुख़न है 
मिले हैं उसे बाग़बाँ कैसे कैसे 

जवानी का सदक़ा ज़रा आँख उठाओ 
तड़पते हैं देखो जवाँ कैसे कैसे 

शब-ए-वस्ल हल होंगे क्या क्या मुअ'म्मे 
अ'याँ होंगे राज़-ए-निहाँ कैसे कैसे 

ख़िज़ाँ लूट ही ले गई बाग़ सारा 
तड़पते रहे बाग़बाँ कैसे कैसे 

बना कर दिखाए मिरे दर्द-ए-दिल ने 
तह-ए-आसमाँ आसमाँ कैसे कैसे 

'अमीर' अब मदीने को तू भी रवाँ हो 
चले जाते हैं कारवाँ कैसे कैसे 

       अमीर मीनाई

©Vivek Dixit swatantra
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प्रेरक ग़ज़ल अगला भाग #शायरी

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