तारों की छांव मैं उभरे कुछ पल जैसे,
हम सिमट गए उनकी बाहों में जैसे,
और कलियां खिल रही हो बाग में जैसे,
परछाइयां मिल रही हो रात में जैसे,
ख्वाहिशों को समेटे तारों की चादर मैं जैसे,
सपनों के सागर में कल को तैयार करते हुए जैसे।
- मोहिता
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