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मंद समीर की तरंगो का आँचल उड़ता रहा फूलों

मंद  समीर  की  तरंगो  का  आँचल 
उड़ता  रहा 
फूलों  क़ि  सुगन्धसे  
मेरा  चमन  महकता  रहा  
ज़ब हमने  आभार  व्यक्त   किया  
तो  खुदा  भी   मुस्कराता  रहा  
ये  भी   क्या कम  था  क़ि 
प्रतिबिम्बों  क़ि  बस्तीमे 
छुपती  रही  परछाईया    गुमशुदा  गलियों में 
पर  मेरा  वजूद  हकीकत  का  दामन   संभाले  रहा . प्रतिबिम्बों  की बस्ती .....
मंद  समीर  की  तरंगो  का  आँचल 
उड़ता  रहा 
फूलों  क़ि  सुगन्धसे  
मेरा  चमन  महकता  रहा  
ज़ब हमने  आभार  व्यक्त   किया  
तो  खुदा  भी   मुस्कराता  रहा  
ये  भी   क्या कम  था  क़ि 
प्रतिबिम्बों  क़ि  बस्तीमे 
छुपती  रही  परछाईया    गुमशुदा  गलियों में 
पर  मेरा  वजूद  हकीकत  का  दामन   संभाले  रहा . प्रतिबिम्बों  की बस्ती .....

प्रतिबिम्बों की बस्ती .....