तुम्हें ढ़ुढ़ती है चंचल निगाहेँ तेरा ठिकाना दिल ढुढ़ता है चेहरे पर तेरी फैली हैं किरणें होठों का तराना गजल गुनता है गेशु में तेरी फैली है बदरी श्याम की चाहत काजल बुनता है तेरी हर बोली घोले है मिसरी हिलता बदन तेरा सजल डोलता है अब तो मिलो एकपल को प्रिये राघव शब्दों का महल खोलता है।।