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आदमी का मानसिक तनाव इग्नोर किया जाता हैं और उसको

आदमी का मानसिक तनाव  इग्नोर किया जाता हैं 
और उसको ज्यादा तवज्जो नही दिया जाता है 
उसके लिए कविता


तुम रूख हो, तूफान भी तुम, तू चट्टान भीए नदी, 
पुरुष हृदय के गहरे में, छिपे सवालों की गठरी।
नज़रों में छुके हुए, आंसू पोंछते हाथ, 
बोझ उठाए चलते हो, बिना किसी शिकायत।
समाज की दौड़ में, तुम रथ का पहिया बने, 
अपनी खुशियों को भुलाकर, दूसरों का घर सजाने।
पर क्या कभी पूछा है, तुम्हारे दिल का हाल
, जो छुपाए दर्द को, सह लेता है बेमिसाल।
डरते हो कमज़ोर कहेंगे, अगर ज़रा टूटे तार,
 तो बना लो नकाब फिर से, मुस्कुराहट का हथियार।
पर सुनो ऐ पुरुष मन, कमज़ोरी नहीं ये बात, 
संवेदनाओं का समंदर, तुम्हारे भीतर समाया है।
बोल दो जो दबा है, रो लो अगर आँसू छलके, 
अपनी ज़िंदगी का बोझ, थोड़ा औरों से बाँट ले।
समझेंगी ये दुनियाँ, तुम्हारा भी दर्द सच्चा, 
हर इंसान के सीने में, धड़कता है एक ही नन्हा।
तो खोलो मन के द्वार अब, हवा लेने दो खुलकर, 
पुरुष हो तुम, पहाड़ नहीं, झुक सकते हो झुककर।
हिम्मत रखो, रास्ता तय करो, हार मत मानो कभी
, खुद को पहचानो, स्वीकारो, खुशियाँ ढूंढो ज़िंदगी।
कविता नहीं ये, सन्देश है, समाज को ये देना
, पुरुष मन की अनसुनी कहानी, अब ज़माने को समझाना

©पूर्वार्थ #आदमी
आदमी का मानसिक तनाव  इग्नोर किया जाता हैं 
और उसको ज्यादा तवज्जो नही दिया जाता है 
उसके लिए कविता


तुम रूख हो, तूफान भी तुम, तू चट्टान भीए नदी, 
पुरुष हृदय के गहरे में, छिपे सवालों की गठरी।
नज़रों में छुके हुए, आंसू पोंछते हाथ, 
बोझ उठाए चलते हो, बिना किसी शिकायत।
समाज की दौड़ में, तुम रथ का पहिया बने, 
अपनी खुशियों को भुलाकर, दूसरों का घर सजाने।
पर क्या कभी पूछा है, तुम्हारे दिल का हाल
, जो छुपाए दर्द को, सह लेता है बेमिसाल।
डरते हो कमज़ोर कहेंगे, अगर ज़रा टूटे तार,
 तो बना लो नकाब फिर से, मुस्कुराहट का हथियार।
पर सुनो ऐ पुरुष मन, कमज़ोरी नहीं ये बात, 
संवेदनाओं का समंदर, तुम्हारे भीतर समाया है।
बोल दो जो दबा है, रो लो अगर आँसू छलके, 
अपनी ज़िंदगी का बोझ, थोड़ा औरों से बाँट ले।
समझेंगी ये दुनियाँ, तुम्हारा भी दर्द सच्चा, 
हर इंसान के सीने में, धड़कता है एक ही नन्हा।
तो खोलो मन के द्वार अब, हवा लेने दो खुलकर, 
पुरुष हो तुम, पहाड़ नहीं, झुक सकते हो झुककर।
हिम्मत रखो, रास्ता तय करो, हार मत मानो कभी
, खुद को पहचानो, स्वीकारो, खुशियाँ ढूंढो ज़िंदगी।
कविता नहीं ये, सन्देश है, समाज को ये देना
, पुरुष मन की अनसुनी कहानी, अब ज़माने को समझाना

©पूर्वार्थ #आदमी