" मुमकिन हो कि कभी तु भी याद कर लें , मेरे बातों का जिक्र कभी तु भी साथ करें , ये इल्म ये तजूरबा कभी तुझे याद आये , भुल से ही सही मेरे शहर - मेरी गलि का , मुआयना कर जाते आते जाते रास्तो में , एक अरसा गुजर गया तुम को देखे हुए . --- रबिन्द्र राम Pic : pexels.com " मुमकिन हो कि कभी तु भी याद कर लें , मेरे बातों का जिक्र कभी तु भी साथ करें , ये इल्म ये तजूरबा कभी तुझे याद आये , भुल से ही सही मेरे शहर - मेरी गलि का , मुआयना कर जाते आते जाते रास्तो में , एक अरसा गुजर गया तुम को देखे हुए .