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rabindrakumarram7246
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Rabindra Kumar Ram

I love writing poetry , sayari , gazal , lyrics , singing etc..

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Rabindra Kumar Ram

" जाने किसकी अज़िय्यत में हूं आखिर क्यों 
उसके तमाम हसरतों का मक़बूलियत हैं क्यों "

                    --- रबिन्द्र राम

©Rabindra Kumar Ram " जाने किसकी अज़िय्यत में हूं आखिर क्यों 
उसके तमाम हसरतों का मक़बूलियत हैं क्यों "

                    --- रबिन्द्र राम 
   #अज़िय्यत -( परेशानी) 
#तमाम #हसरतों #मक़बूलियत - (स्वीकृत)

" जाने किसकी अज़िय्यत में हूं आखिर क्यों उसके तमाम हसरतों का मक़बूलियत हैं क्यों " --- रबिन्द्र राम #अज़िय्यत -( परेशानी) #तमाम #हसरतों #मक़बूलियत - (स्वीकृत) #शायरी

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Rabindra Kumar Ram

" खुद को अब किस तरफ ना मसरुफ़ रखा जाये ,
मुहब्बत तु हैं तो‌ तुझसे फिर किस‌ कदर ना मा'रूफ़ रखा जाये ,
बज़्मेनाज़ से मैं तुमसे मिलता ही रहता हूं ,
कमबख़्त इस दिल को कहीं तसली भी नहीं मिल रहा . " 

                            --- रबिन्द्र राम

©Rabindra Kumar Ram " खुद को अब किस तरफ ना मसरुफ़ रखा जाये ,
मुहब्बत तु हैं तो‌ तुझसे फिर किस‌ कदर ना मा'रूफ़ रखा जाये ,
बज़्मेनाज़ से मैं तुमसे मिलता ही रहता हूं ,
कमबख़्त इस दिल को कहीं तसली भी नहीं मिल रहा . " 

                            --- रबिन्द्र राम

 #मसरुफ़ #मुहब्बत #मा'रूफ़ ( जान-पहचान)

" खुद को अब किस तरफ ना मसरुफ़ रखा जाये , मुहब्बत तु हैं तो‌ तुझसे फिर किस‌ कदर ना मा'रूफ़ रखा जाये , बज़्मेनाज़ से मैं तुमसे मिलता ही रहता हूं , कमबख़्त इस दिल को कहीं तसली भी नहीं मिल रहा . " --- रबिन्द्र राम #मसरुफ़ #मुहब्बत #मा'रूफ़ ( जान-पहचान) #शायरी

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Rabindra Kumar Ram

" हसरतों का अब कौन सा मुकाम बनाते हम ,
दहलीज़ों पे तेरे होने का कुछ यकीनन यकीन आये ,
रुठे - रुठे से जऱा मायूस हो चले अब हम ,
बेशक उसके ज़र्फ़ में इसी शिद्दत से भी हमें भी आजमायें जाये ." 

                           --- रबिन्द्र राम

©Rabindra Kumar Ram " हसरतों का अब कौन सा मुकाम बनाते हम ,
दहलीज़ों पे तेरे होने का कुछ यकीनन यकीन आये ,
रुठे - रुठे से जऱा मायूस हो चले अब हम ,
बेशक उसके ज़र्फ़ में इसी शिद्दत से भी हमें भी आजमायें जाये ." 

                           --- रबिन्द्र राम 

 #हसरतों #दहलीज़ों #ज़र्फ़ #आजमायें

" हसरतों का अब कौन सा मुकाम बनाते हम , दहलीज़ों पे तेरे होने का कुछ यकीनन यकीन आये , रुठे - रुठे से जऱा मायूस हो चले अब हम , बेशक उसके ज़र्फ़ में इसी शिद्दत से भी हमें भी आजमायें जाये ." --- रबिन्द्र राम #हसरतों #दहलीज़ों #ज़र्फ़ #आजमायें #शायरी

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Rabindra Kumar Ram

" ‌‌इस उम्मीद में कहीं मुलाकात तो हाेगी ,
जद्दोजहद में इन रातों फिर का क्या करना ,
मुसलसल एहसासों को तबजओ दे तो आखिर क्या ,
सुलगती हिज़्र के रातों का फिर क्या करना ,
नुमाइश मुम्किन तो फिर कहीं बात छेड़े हम ,
वस्ल की गुज़ारिश में तेरे एल्म का फिर क्या करना ." 

                             --- रबिन्द्र राम

©Rabindra Kumar Ram  " ‌‌इस उम्मीद में कहीं मुलाकात तो हाेगी ,
जद्दोजहद में इन रातों फिर का क्या करना ,
मुसलसल एहसासों को तबजओ दे तो आखिर क्या ,
सुलगती हिज़्र के रातों का फिर क्या करना ,
नुमाइश मुम्किन तो फिर कहीं बात छेड़े हम ,
वस्ल की गुज़ारिश में तेरे एल्म का फिर क्या करना ." 

                             --- रबिन्द्र राम

" ‌‌इस उम्मीद में कहीं मुलाकात तो हाेगी , जद्दोजहद में इन रातों फिर का क्या करना , मुसलसल एहसासों को तबजओ दे तो आखिर क्या , सुलगती हिज़्र के रातों का फिर क्या करना , नुमाइश मुम्किन तो फिर कहीं बात छेड़े हम , वस्ल की गुज़ारिश में तेरे एल्म का फिर क्या करना ." --- रबिन्द्र राम #शायरी

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Rabindra Kumar Ram

" मुख्तलिफ बात थी हम तुझे इशारा क्या करते ,
तेरे साथ चलना था मुझे तुझसे किनारा क्या करते ,
ज़ेहन में आते - जाते महज तेरी बातें ही नागवार थी ,
फिर तुझसे से तेरे होकर और तुझसे बिछड़ के तेरे हिज़्र में गुजारा क्या करते . " 

                            --- रबिन्द्र राम

©Rabindra Kumar Ram " मुख्तलिफ बात थी हम तुझे इशारा क्या करते ,
तेरे साथ चलना था मुझे तुझसे किनारा क्या करते ,
ज़ेहन में आते - जाते महज तेरी बातें ही नागवार थी ,
फिर तुझसे से तेरे होकर और तुझसे बिछड़ के तेरे हिज़्र में गुजारा क्या करते . " 

                            --- रबिन्द्र राम

 #मुख्तलिफ #इशारा #ज़ेहन #नागवार #हिज़्र #गुजारा

" मुख्तलिफ बात थी हम तुझे इशारा क्या करते , तेरे साथ चलना था मुझे तुझसे किनारा क्या करते , ज़ेहन में आते - जाते महज तेरी बातें ही नागवार थी , फिर तुझसे से तेरे होकर और तुझसे बिछड़ के तेरे हिज़्र में गुजारा क्या करते . " --- रबिन्द्र राम #मुख्तलिफ #इशारा #ज़ेहन #नागवार #हिज़्र #गुजारा #शायरी

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Rabindra Kumar Ram

यूं हासिल होने को हम भी हो जाये ,
हमें मुहब्बत से भी चाहे कभी कोई . "
ये इल्म तेरा यकीनन इल्म तेरा ही हो , 
तुम हमारे ख़सारे पे ग़ैर तो फ़रमाओ . "

                       --- रबिन्द्र राम

©Rabindra Kumar Ram यूं हासिल होने को हम भी हो जाये ,
हमें मुहब्बत से भी चाहे कभी कोई . "
ये इल्म तेरा यकीनन इल्म तेरा ही हो , 
तुम हमारे ख़सारे पे ग़ैर तो फ़रमाओ . "

                       --- रबिन्द्र राम

 #मुहब्बत #इल्म #ग़ैर #फ़रमाओ

यूं हासिल होने को हम भी हो जाये , हमें मुहब्बत से भी चाहे कभी कोई . " ये इल्म तेरा यकीनन इल्म तेरा ही हो , तुम हमारे ख़सारे पे ग़ैर तो फ़रमाओ . " --- रबिन्द्र राम #मुहब्बत #इल्म #ग़ैर #फ़रमाओ #शायरी

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Rabindra Kumar Ram

*** ग़ज़ल ***
*** फ़ुर्क़त ***

" आज इक दफा उस से मुलाकात हुई ,
फ़ुर्क़ते हयाते-ए-ज़िक्र अब जो भी हो सो हो ,
मुहब्बत में बचे शिकवे शिकायतें आज भी हैं‌ ,
आज उसे इक दफा गले लगाने को दिल कर रहा हैं ,
फकत अंजुमन कुछ भी तो कुछ बात बने ,
फ़ुर्क़त में उसे दाटने को जि कर रहा है ,
क्या समझाये की अब मुहब्बत नहीं हैं तुझसे ,
फकत तुझे महज़ इक याद की तरह रखी ,
तेरी तस्वीर आज भी इक पास रखी हैं ,
फिर जो कहीं मुहब्बत और नफ़रत की गुंजाइश हो तो याद करना ,
आखिर हम रक़ीबों से ‌दिल लगा के‌ आखिर करते क्या‌ . "

                           --- रबिन्द्र राम

©Rabindra Kumar Ram *** ग़ज़ल ***
*** फ़ुर्क़त ***

" आज इक दफा उस से मुलाकात हुई ,
फ़ुर्क़ते हयाते-ए-ज़िक्र अब जो भी हो सो हो ,
मुहब्बत में बचे शिकवे शिकायतें आज भी हैं‌ ,
आज उसे इक दफा गले लगाने को दिल कर रहा हैं ,
फकत अंजुमन कुछ भी तो कुछ बात बने ,

*** ग़ज़ल *** *** फ़ुर्क़त *** " आज इक दफा उस से मुलाकात हुई , फ़ुर्क़ते हयाते-ए-ज़िक्र अब जो भी हो सो हो , मुहब्बत में बचे शिकवे शिकायतें आज भी हैं‌ , आज उसे इक दफा गले लगाने को दिल कर रहा हैं , फकत अंजुमन कुछ भी तो कुछ बात बने , #कविता #गुंजाइश #रक़ीबों #दाटने

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Rabindra Kumar Ram

*** ग़ज़ल *** 
*** दरीचे ***

" गिले-शिकवे तमाम रखेंगे ,
मुहब्बत के दरीचे तमाम रखेंगे ,
फिर तुझसे कैसे और क्या मिला जाये ,
बात जो भी फिर गिला - शिकवा का क्या किया जाये ,
यूं रोज़ आयेदिन तुमसे सामना होता ही रहेगा फिर किसी ना किसी बहाने ,
मुहब्बत की पुर-ख़ुलूस मुहब्बत ही रहेगा ,
दिल को दिलासा ना देते तो क्या देते ,
इस एवज में दिल को तुझे मुहब्बत करने से सुधार तो नहीं देते ,
यूं देखना भी फिर देखना ही हैं यूं तसव्वुर के ख्यालों से ,
फिर किसी और की तस्बीर लगा तो नहीं देते ,
जो है सो है फिर किसी और को पनाह तो नहीं देते ,
दिल फिर इस इल्म से गवारा क्या कर लें ,
तुझे छोड़ के फिर से इश्क़-मुहब्बत दुबारा कर लें . "

                       --- रबिन्द्र राम

©Rabindra Kumar Ram *** ग़ज़ल *** 
*** दरीचे ***

" गिले-शिकवे तमाम रखेंगे ,
मुहब्बत के दरीचे तमाम रखेंगे ,
फिर तुझसे कैसे और क्या मिला जाये ,
बात जो भी फिर गिला - शिकवा का क्या किया जाये ,
यूं रोज़ आयेदिन तुमसे सामना होता ही रहेगा फिर किसी ना किसी बहाने ,

*** ग़ज़ल *** *** दरीचे *** " गिले-शिकवे तमाम रखेंगे , मुहब्बत के दरीचे तमाम रखेंगे , फिर तुझसे कैसे और क्या मिला जाये , बात जो भी फिर गिला - शिकवा का क्या किया जाये , यूं रोज़ आयेदिन तुमसे सामना होता ही रहेगा फिर किसी ना किसी बहाने , #इश्क़ #शायरी #गवारा #तसव्वुर #पनाह #इल्म #तस्बीर #पुर

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Rabindra Kumar Ram

*** ग़ज़ल *** 
*** करें तो क्या करें ***

" दिल गवारा ना करें तो क्या करें ,
तेरे बगैर फिर गुजारा ना करें तो क्या करें ,
उल्फते-ए-हयाते  में ज़िक्र तेरा आज भी हैं ,
अब तेरा महज ज़िक्र भी ना करें तो क्या करें ,
मिलना तो मुकम्बल हुआ ही नहीं ,
तेरे हिज़्र में दिन और रात का गुजारा ना करें तो क्या करें ,
उल्फते-ए-हयाते ज़िक्र तेरा आज भी हैं ,
ऐसे भी इस रुसवाई में ना जिये भला तो क्या करें ,
मलाल हैं अब तेरे बाद मलाल अब कुछ भी ना रह जायेगा ,
तिश्नगी हैं अब मलाल कुछ भी तेरे बगैर मलाल कुछ भी नहीं रह जायेगा ,
रूह-ए-ख़्वाबीदा हूं जाने कब से इस उल्फत में तुझे मेरा ख्याल जाने कब आयेगा . " 

                         --- रबिन्द्र राम

©Rabindra Kumar Ram *** ग़ज़ल *** 
*** करें तो क्या करें ***

" दिल गवारा ना करें तो क्या करें ,
तेरे बगैर फिर गुजारा ना करें तो क्या करें ,
उल्फते-ए-हयाते  में ज़िक्र तेरा आज भी हैं ,
अब तेरा महज ज़िक्र भी ना करें तो क्या करें ,
मिलना तो मुकम्बल हुआ ही नहीं ,

*** ग़ज़ल *** *** करें तो क्या करें *** " दिल गवारा ना करें तो क्या करें , तेरे बगैर फिर गुजारा ना करें तो क्या करें , उल्फते-ए-हयाते में ज़िक्र तेरा आज भी हैं , अब तेरा महज ज़िक्र भी ना करें तो क्या करें , मिलना तो मुकम्बल हुआ ही नहीं , #ख्याल #कविता #रूह #तिश्नगी #रुसवाई #मलाल

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Rabindra Kumar Ram

" फिर तुझसे कब कहाँ कैसे यकीनन मिला जाये, 
मयस्सर में तेरे ख्वाब कही मुकम्मल हो तो हो, 
अब यार तेरे तलब की दुहाई क्या देता मैं, 
कभी यार गैरइरादतन कभी ऐसे भी तो मिले होते ."
    
                            --- रबिन्द्र राम

©Rabindra Kumar Ram " फिर तुझसे कब कहाँ कैसे यकीनन मिला जाये, 
मयस्सर में तेरे ख्वाब कही मुकम्मल हो तो हो, 
अब यार तेरे तलब की दुहाई क्या देता मैं, 
कभी यार गैरइरादतन कभी ऐसे भी तो मिले होते ."
    
                            --- रबिन्द्र राम 

#यकीनन #मयस्सर #ख्वाब #मुकम्मल

" फिर तुझसे कब कहाँ कैसे यकीनन मिला जाये, मयस्सर में तेरे ख्वाब कही मुकम्मल हो तो हो, अब यार तेरे तलब की दुहाई क्या देता मैं, कभी यार गैरइरादतन कभी ऐसे भी तो मिले होते ." --- रबिन्द्र राम #यकीनन #मयस्सर #ख्वाब #मुकम्मल #शायरी

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