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आज इधर कल उधर, भटकता रहा मन..! स्थिर रहता नहीं कभ

 आज इधर कल उधर,
भटकता रहा मन..!
स्थिर रहता नहीं कभी,
बस रहती है उलझन..!

फूल की चाह में रहे सदा,
मिला पर काँटों का उपवन..!
अंतर्मन की आवाज़ सुनी न,
बाहरी दिखावे की अग्रसर तन..!

इंसानियत का क़त्ल करते,
असीमित जिनके पास है धन..!
अंतर्मन में ही बसे हुए हैं,
क्यों ढूँढे कहीं और भगवन..!

भक्तिमय होकर देखो कभी,
हरि नाम का कर सुमिरन..!
विशुद्ध विचार जीवन का प्रसार,
नेकी का खिलेगा यूँ गुलशन..!

©SHIVA KANT(Shayar)
  #Apocalypse #antarmankiaawaz