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Kamal Kant
सांस चल रही हैं हाल न पूछिए आप खुश तो हैं सवाल न पूछिए ©Kammal Kaant Joshii #Apocalypse #Shayari #2liners #alone #Broken #feelings #thought
NAZAR
इतना पढ़ा है मेरे लफ़्ज़ों को तो आज अल्फाजों की ख़ामोशी भी समझ लेना,,,,,, नज़र ©NAZAR #Apocalypse#book#shayri#najar#khamoshi
#Apocalypse#Book#shayri#Najar#Khamoshi
read moreTimsi thakur
मैंने बैठ इत्मिनांन से सुनी उसकी कहानी उसने कबसे अपने दिल में दबा रखी थी यूँ पथर् सा किरदार बना रखा है उसने कभी फूलों सी महका करती थी चिड़ियों सी चहका करती थी मैं डरपोक समझती रहीं उसे अब तलक अंजान इस बात से उस पर क्या गुजरी हैं एक वक़्त था किसी ने सर माथे उसे चढ़ाया आया एक तूफान सा जिंदगी में फिर उड़ा कर रंग प्यार का उससे ले गया कितनी कोशिशे की उसने वो सम्भाल ले वो समेट ले.. ना जोड़ सकी टूटे दिल के टुकड़े बिखर कर रह गयी.. जर्रा जर्रा समेटा उसने सींचकर आँसुओं से खुद को... अडिग उसूलों की अपने पर चहेरे से बेजान सी लगती हैं अब... वो जिसने छोड़ दिया उसे हाल पर उसके अब लौटने की उससे मिन्नते करता हैं... पर क्या रहा बाकी अब वो सम्भल चुकी हैं ना टूटेगी ना पिघलेगी इस बार उसका वो अटुट प्रेम अब स्वाभिमान बन चुका हैं और स्त्री प्रेम से समझौता कर भी ले स्वाभिमान से अपने मुकरति नहीं हैं हे पुरुष ! वो सच्ची स्त्री हैं तेरे रुतबे पैसे सरकारी नौकरी पर भी नहीं बेहकेगी उस वक़्त तेरे साथ थी वो जब तेरा वजूद कुछ नहीं था.. तेरा निः स्वार्थ प्रेम तेरा साथ भाता था उसे... देख तेरा अहम अब वो अपनी पहचान बनाने निकल गयी नहीं तेरे लौटने का इंतजार उसे अब तू जहा हो मगर आज भी तेरी सलामती की दुआ करती हैं... तेरे दिये जख्म तेरे प्रेम से बढ़कर बन चुके हैं अब... उसे तुझ पर ऐतबार नहीं .. ना खुद लौटेगी ना तुझे लौटने देगी उसकी जिंदगी में दौबारा वो स्त्री हैं वो कभी कुछ नहीं भूलती l ©Timsi thakur #Apocalypse
Timsi thakur
मैंने बैठ इत्मिनांन से सुनी उसकी कहानी उसने कबसे अपने दिल में दबा रखी थी यूँ पथर् सा किरदार बना रखा है उसने कभी फूलों सी महका करती थी चिड़ियों सी चहका करती थी मैं डरपोक समझती रहीं उसे अब तलक अंजान इस बात से उस पर क्या गुजरी हैं एक वक़्त था किसी ने सर माथे उसे चढ़ाया आया एक तूफान सा जिंदगी में फिर उड़ा कर रंग प्यार का उससे ले गया कितनी कोशिशे की उसने वो सम्भाल ले वो समेट ले.. ना जोड़ सकी टूटे दिल के टुकड़े बिखर कर रह गयी.. जर्रा जर्रा समेटा उसने सींचकर आँसुओं से खुद को... अडिग उसूलों की अपने पर चहेरे से बेजान सी लगती हैं अब... वो जिसने छोड़ दिया उसे हाल पर उसके अब लौटने की उससे मिन्नते करता हैं... पर क्या रहा बाकी अब वो सम्भल चुकी हैं ना टूटेगी ना पिघलेगी इस बार उसका वो अटुट प्रेम अब स्वाभिमान बन चुका हैं और स्त्री प्रेम से समझौता कर भी ले स्वाभिमान से अपने मुकरति नहीं हैं हे पुरुष ! वो सच्ची स्त्री हैं तेरे रुतबे पैसे सरकारी नौकरी पर भी नहीं बेहकेगी उस वक़्त तेरे साथ थी वो जब तेरा वजूद कुछ नहीं था.. तेरा निः स्वार्थ प्रेम तेरा साथ भाता था उसे... देख तेरा अहम अब वो अपनी पहचान बनाने निकल गयी नहीं तेरे लौटने का इंतजार उसे अब तू जहा हो मगर आज भी तेरी सलामती की दुआ करती हैं... तेरे दिये जख्म तेरे प्रेम से बढ़कर बन चुके हैं अब... उसे तुझ पर ऐतबार नहीं .. ना खुद लौटेगी ना तुझे लौटने देगी उसकी जिंदगी में दौबारा वो स्त्री हैं वो कभी कुछ नहीं भूलती l ©Timsi thakur #Apocalypse
rajiv srivastava
किसी तीसरे की क्या औकात कि कोई रिश्ता खत्म करा दे। रिश्ता तब खत्म होता है जब कोई अपना बेईमान होता है। ©rajiv srivastava #Apocalypse
Keshav baba
रात सभी के लिए एक जैसी नही होती, क्योंकि कोई सो कर गुजार देता है तो कोई रोकर ©Keshav baba #Apocalypse
theABHAYSINGH_BIPIN
कैसे कह दूँ की सब कुछ बेदाग़ है खून नहीं फिर भी हाथ दोनों लाल है!! कैसे कह दूँ कुछ अच्छे का हकदार मैं कमीज पर बस अश्कों के हि दाग़ है!! रंग मंच पर मुझको सिर्फ़ गुमान था जाने मुझमें बसा कितना किरदार था !! जिया उस दर्द को फ़िर मुझे होश हुआ तब सुझा मुझमें कितना अहंकार था !! जाने कैसे मुझको वो अंधकार ही भाया याद है तब सबने मुझको ही समझाया कितना खुश था खुद के भ्रम माया में सबने मुझको अच्छा रास्ता ही दिखाया मन का होने से जिसने भी इनकार किया जिसके मन मे बैठा उसको मैंने दूर किया !! किसी बातों पर मुझको एतबार नहीं था सृजन रूपी हृदय को कितना घात किया ।। कैसे कह दूँ ख़ुद से की हाल बेहाल है ख़ुद के कर्मो का मुझे कितना मलाल है!! अब कहता हूँ की बिल्कुल बेदाग़ नहीं हूँ मैं खून नहीं फिर भी मेरे हाथ दोनों लाल है!! ©theABHAYSINGH_BIPIN #Apocalypse
dimple
घर आंगन में हँसते, खाते बुजुर्गों की आवाजें, घर के बच्चों की, ज़हीन शक्सियत बयां करती है l मेहनत किया करो इसे काबू में रखने की, बनाएगी या बिगड़ेगी, तय आपकी जबां करती है बीस हज़ार मजदूरों के, कटे हाथों की दास्तान, खूबसूरत ताजमहल की, बदसूरती बयां करती है l हँसता हुआ चेहरा दे सकता है धोखा मगर, ज़बान की कड़वाहट, मन की नाराजगी बयां करती है धंसी आँखें, फटे जूते और मैली बनियान मज़दूर की, दो वक्त रोटी जुटाने की जद्दोजहद बयां करती है l घर बार छोड़कर जो बाहर कमाने निकल जाते है, उनके दिल का हाल, उनकी आँखें बयां करती है ll _____________ April 2024 ©Dimple Kumar #Apocalypse
Arun
मन विचलित होगा, बैचेन होगा पर तुझको संभलना होगा अगर तुझे चाहिए मंजिल तो खुद को बदलना होगा। राह -ए-मंजिल आसान नहीं होती भूख, प्यास, दर्द सब होगा पर तुझको चलना होगा अगर तुझे चाहिए मंजिल तो.............................। जुगनुओं से दोस्ती करनी होगी, खुद के साथ वक्त बिताना होगा कभी सूरज से पहले जागना होगा, कभी सूरज के बाद ढलना होगा अगर तुझे चाहिए मंजिल तो.…..…................................। बीच राह में मन घबराएगा हार जाने का डर सताएगा फिर तू किसके पास जायेगा तब खुद ही खुद को तुझे विश्वास दिलाना होगा फिर से एक बार आंखों को मंजिल का ख़्वाब दिखाना होगा अगर तुझे चाहिए मंजिल तो....................................। जब एक रोज़ मंजिल तुझसे रू-ब-रू होगी हर किसी को तुझसे मिलने की जुस्तजू होगी जब अपनी माशूका से मिलने जाए तो याद रखना घर पर इंतजार करने वाली मां भी होगी।।। ©Arun #Apocalypse
Manisha patel journey of realization
गर्दिशों में मेरे सितारे थे फिर भी मुस्कुरा कर जिता गया। अपने पराएँ कि बात ना करो अब सब के दिए गम भी पीता गया। जख्म गहरे थे मेरे जिदंगी के दर्द-ए-ला-दवा रास आ ना सकी मुझे , मैं खुद ही खुद के जख्मों को सुईं बन सिता गया। अब कोई मुझसे पूछेगा जिदंगी का अफसाना तो कह दूगा ख्वाब बहुत थे मेरी आँखों में, जिदंगी कुछ ओर नहीं एक जहर का जाम है जिसे मैं मिठा जाम समझ कर पीता गया। ©Manisha patel journey of realization #Apocalypse