*"आधुनिक युग की विरह वेदना "* *1* चमक रहा है युगो से यह अपरिवर्तित राकेश, क्यो बिखर पङे है यह दूनिया के बुराईयो के केश, बदल रहा है यह पौराणिक ॠषि मुनियो का देश, क्यो धारण कर लिया इसने यह घृणा का भेष, *2* रह न पाये यहाँ विवेकानंद जैसे अवशेष, क्यो इंसान निर्दयी खण्डहर बनकर रह गया शेष, ईर्ष्या का झरना बनकर बह रहा है यह देश, क्यो रह गये है यह दशा देख सज्जन निर्निमेष, *3* बन गया है काजल, कलंक लगाने को यह देश, क्यो पहन रहा है यह आपसी शत्रुता का वेश, लगाते है कवि देश के भविष्य का Guess , क्यो रह जायेगा यह देश सत्य प्रेम से Less , present country