बिजली कड़के, म्हारो छाती धड़के। जद ओल्यूं बलम की आवे, आंख्या की नींद गायब हो जावे। काऴी-काऴी रात अंधियारी, किनै बताऊं मैं दुखियारी। यो जोबन बित्यो जावे, शरीर म्हारो अंगड़ाई खावे। जद सखियां संग पाणी लेवण जाऊं, लाज-शर्म से मरी-मरी जाऊं। दिल न कियां समझाऊं, मनड़े री बातां कि न बताऊं। सावन री रिमझिम पाणी री बूंदां , मैं तो बड़ी दुखी होगी होकर थां सूं होकर जुदां। "एस.पी.चौहान" ©Shishpal Chauhan #बिजली कड़के