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वापसी -------/ तुम पावस की प्रथम बूंद सी। धरती में

वापसी
-------/
तुम पावस की प्रथम बूंद सी।
धरती में समाहित क्यों नहीं होती।
तुम गंगा के पुण्य जलधारा सी।
सागर तक प्रवाहित क्यों नहीं होती।
क्या मेरा वक्ष उर्वर नही है,
तुम्हारे प्रेम के अनुकरण हेतु।
मैं किनारों सा तुझे बस बांध के रखना चाहता हूँ।
बांध होना नही चाहता।
क्या भय है तुम्हें,
मेरे विशाल होने का,या टूट जाने का।।
या तुम्हें व्याकुलता है वापसी की।
तुम जाना चाहती हो,
पहाड़ो से ऊपर मंडराते
बदलो के पंख पे उड़ते हुए।
सूर्यकिरण की ओट में छुपे।
किसी अपनी परलोक।
सुनो।
फिर मेरा प्रेम,
चाहिए होगा तुम्हे।
बिना इसके तुम्हारी वापसी का।
और स्वप्न  का वो दरवाज़ा नहीं खुलता।।

☺️☺️☺️
निर्भय चौहान #opensky #Poetry #Poet #Love #writer #Nojoto #Nojoto_Films
वापसी
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तुम पावस की प्रथम बूंद सी।
धरती में समाहित क्यों नहीं होती।
तुम गंगा के पुण्य जलधारा सी।
सागर तक प्रवाहित क्यों नहीं होती।
क्या मेरा वक्ष उर्वर नही है,
तुम्हारे प्रेम के अनुकरण हेतु।
मैं किनारों सा तुझे बस बांध के रखना चाहता हूँ।
बांध होना नही चाहता।
क्या भय है तुम्हें,
मेरे विशाल होने का,या टूट जाने का।।
या तुम्हें व्याकुलता है वापसी की।
तुम जाना चाहती हो,
पहाड़ो से ऊपर मंडराते
बदलो के पंख पे उड़ते हुए।
सूर्यकिरण की ओट में छुपे।
किसी अपनी परलोक।
सुनो।
फिर मेरा प्रेम,
चाहिए होगा तुम्हे।
बिना इसके तुम्हारी वापसी का।
और स्वप्न  का वो दरवाज़ा नहीं खुलता।।

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