मजदूर गाँव के हरे भरे खेतों को छोड़ निकला था शहर नये भाविष्य की ओर....... ठीक ठाक कमाने लगा था दो वक़्त की रोटी खा घर चालाने लगा था...... एक दिन अचानक कुछ हुआ ऐसा मोहताज खाली जेब नहीं था एक भी पैसा..... सारकारें बोलती रहीं हम साथ हैँ मदद करेंगे खाली पेट कब तक रहते दम कैसे भरेंगे........ हाथ जोड़े पेरों में गिरके मांगी मदद ना दिखी कोई उम्मीद तो पैदल ही नाप दी सड़क....... मीलों चले कई दिन चले पहुँचे थे अपने गाँव में ठोकर पड़ी तो तय किया ज़िन्दगी कटेगी अब यहीं पीपल की छावं में ......... #mazdoor