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हे सरस्वती माँ....... चहुँ दिशा गुंजित तेरा ही प्

हे सरस्वती माँ....... 
चहुँ दिशा गुंजित तेरा ही प्रताप
सर्वत्र व्याप्त तेरा ही आलाप
तुझसे ही सुवासित रज-रज
क्षण-क्षण अक्षुण्ण धरा-आकाश ।। 

हे सरस्वती माँ....... 
धवल वसनों में श्रंगरित तेरी काया
ज्ञान परिपूर्ण सब मोह-माया
पुण्य- पतित को तू ही कर रही विभूषित
मूर्ख को करती पांडित्य से मंडित ।। 

हे सरस्वती माँ....... 
सजा रहता हृदयों में तेरा रूप साधारण
तू ही भीड़ जगत को कर रही असाधारण
असभ्य मानवों को सिखा रही 
आदि से अद्यतन सही आचरण ।। 

हे सरस्वती माँ....... 
उतर रहा सभ्यताओं में तेरा ही विन्यास
कण- तृण को तुझ पर ही भरोसा
तुझसे ही मिटता रहा सदा
भू- व्योम-ब्रह्मांड का त्रास ।। 

हे सरस्वती माँ.......
हे सरस्वती माँ....... 
चहुँ दिशा गुंजित तेरा ही प्रताप
सर्वत्र व्याप्त तेरा ही आलाप
तुझसे ही सुवासित रज-रज
क्षण-क्षण अक्षुण्ण धरा-आकाश ।। 

हे सरस्वती माँ....... 
धवल वसनों में श्रंगरित तेरी काया
ज्ञान परिपूर्ण सब मोह-माया
पुण्य- पतित को तू ही कर रही विभूषित
मूर्ख को करती पांडित्य से मंडित ।। 

हे सरस्वती माँ....... 
सजा रहता हृदयों में तेरा रूप साधारण
तू ही भीड़ जगत को कर रही असाधारण
असभ्य मानवों को सिखा रही 
आदि से अद्यतन सही आचरण ।। 

हे सरस्वती माँ....... 
उतर रहा सभ्यताओं में तेरा ही विन्यास
कण- तृण को तुझ पर ही भरोसा
तुझसे ही मिटता रहा सदा
भू- व्योम-ब्रह्मांड का त्रास ।। 

हे सरस्वती माँ.......