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नारी की मुस्कान खोई, बेड़ियों मे कैद हैं, जुबान काट

नारी की मुस्कान खोई, बेड़ियों मे कैद हैं,
जुबान काट ली उनकी, चीखें कैद है।

आँख भर आती मेरी ,कभी मैंने नुमाइश की नहीं,
दर्द मेरा जाने कब से, धड़कनों मे कैद है।

वारदात ए- जिस्म ज्यादती का सिलसिला, कहाँ जा के थमें,
आँसुओं की धारा बन ,सिसकियों मे कैद है।

साद कोई क्या करें , जख्मों की खाईं बनी,
न्याय भी अब तो, धर्म - जाति मे कैद है।
 
तीरगी को जिन्दगी से हम, मिटाएं कैसे अब,
गमज़दा है जो कलम वो, बंदियों मे कैद है।

©anuragbauddh
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