अपना ही पता न चले यह भी कोई जिंदगी हुई? चले उठे बैठे पर उसका पता ही न चला ज़ो भीतर छिपा था अपने से ही पहचान न हुई यह भी कोई जिंदगी है? अपने से कभी मिलना न हुआ. ये भी कोई जिंदगी है? निकततम थे हम अपने उसको भी न छू पाए और परमात्मा को छूने की आकांक्षा कर बैठे चाँद तारोपर पहुंचने की बात किया करते है हम पर अपनेभीतर हम कभी पहुंच नहीं पाए ये भी कोई जिंदगी है? ©Parasram Arora ये भी कोई जिंदगी है?