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अपना ही पता न चले यह भी कोई जिंदगी हुई? चले उठे

अपना ही  पता न  चले
यह भी कोई जिंदगी हुई?
चले  उठे  बैठे  पर उसका
पता ही न चला  ज़ो भीतर  छिपा था
अपने से ही पहचान न हुई
यह भी कोई जिंदगी  है?
अपने से कभी मिलना न हुआ.
ये भी कोई जिंदगी है?
निकततम थे  हम अपने
उसको भी न छू  पाए
और परमात्मा को छूने की
आकांक्षा   कर बैठे
चाँद तारोपर पहुंचने की  बात  किया करते  है हम 
पर अपनेभीतर
 हम कभी पहुंच  नहीं पाए
ये भी कोई  जिंदगी  है?

©Parasram Arora ये भी कोई  जिंदगी  है?
अपना ही  पता न  चले
यह भी कोई जिंदगी हुई?
चले  उठे  बैठे  पर उसका
पता ही न चला  ज़ो भीतर  छिपा था
अपने से ही पहचान न हुई
यह भी कोई जिंदगी  है?
अपने से कभी मिलना न हुआ.
ये भी कोई जिंदगी है?
निकततम थे  हम अपने
उसको भी न छू  पाए
और परमात्मा को छूने की
आकांक्षा   कर बैठे
चाँद तारोपर पहुंचने की  बात  किया करते  है हम 
पर अपनेभीतर
 हम कभी पहुंच  नहीं पाए
ये भी कोई  जिंदगी  है?

©Parasram Arora ये भी कोई  जिंदगी  है?