ऐ यात्री. गंतव्य को निकल तु है किसके इंतज़ार में यहाँ है सभी मशगूल व्यापार में युँ ना हल्का समझ गठरी के भार को भुला देते जेहन सफर के सार को निरंतर भीड़ गुजर रही अपने -पराये से कोसों दूर बताते परिभाषा सफर कि जैसे ख़ुद दर्शक -दर्शन हो समय समाप्त हुआ वक्त हुआ चलने का अब भी तो सम्हल ऐ यात्री. गंतव्य को निकल .... lkjha"राही " ©Lk jha ऐ यात्री