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ज़िन्दगी.. सफर में जब ज़िन्दगी को देखा जो अनजान रा

ज़िन्दगी..
सफर में जब ज़िन्दगी को देखा
जो अनजान राहों पर चलते जा रही थी
कभी संगीत के स्वर की तरह
मुस्कुरा रही थी,
तो कभी आंखमिचोली खेल
डरा रही थी।
मंजिल तक पहुचने की धुन में
बिना रुके वह चलती जा रही थी,
कभी नदियों की तरह बहती
तो कभी पहाडों से टकरा रही थी।
हिम्मत कर एक दिन
मैंने उससे पूछ ही लिया,
"मुझे क्यों इतना सता रही थी
जब देखो तब मुझे आजमा रही थी,
चल तो रहा था तेरी ही शर्तो पर
तो क्यों हर बार इम्तिहान लिए जा रही थी।

©R.y
  #ज़िन्दगी..