#द्रौपदी मेरी इस दयनीय दशा पर कुछ तो करो विचार हरे, नैनन में है मेरी, तिरस्कार के नीर भरे । लोक लाज कुल की मर्यादा, भरी सभा में है हारी , मुझ अबला पर दया करो, हे ! कृष्ण चक्रधारी । दुहशासन है खींचे जा रहा, पांचाली की साड़ी, अधर्म से विवश हुई, द्रौपदी बेचारी । झुक गए है मस्तक सारे,कोई सुने ना पीड़ा तुम्हारी, राजा तो अंधा है ही, बहरी हुई सभा सारी । ।