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"मन" कभी मन चंचल रहता है ,कभी शांत रहता है कभी मन

"मन"

कभी मन चंचल रहता है ,कभी शांत रहता है
कभी मन अमृत सा मीठा होता है,कभी विष सा तीखा होता है,
मन बड़ा ही अचंभित करता है।।

कभी शरारतें करता है, कभी शिकायते करता है,
कभी बच्चा बन बचपना करता है,कभी बडा बन समझदार बनता है,
मन बड़ा ही विचित्र सा लगता है,

कभी रोने लगता है,कभी हँसने लगता है,
कभी बेचैन फिरता है,कभी पागल सा बनता है,
मन बड़ा ही खोया रहता है,

कभी दूसरो के दुख में दुखता है,कभी दूसरो के सुख में दुखता है,
कभी दूसरो की खुशियों खुश रहता हैकभी दूसरो के दुख में खुश रहता है,
मन बड़ा ही विरूप सा लगता है।।

कभी यादों में खोया रहता है,कभी यादों को मिटाना चाहता है,
कभी ये मन कुछ कहता है,कभी ये मन कुछ कहता है,
मन बड़ा ही विचलित रहता है।।

कभी ये गुस्सा कर खुद को कोसता है,कभी ये प्यार से खुद को सींचता है,
कभी यार बन समझता है,कभी दुश्मन बन छलता है,
मन बड़ा ही भ्रमित रखता है।।

कभी दूसरो के आसुओं में तड़पता है,कभी खुद के आसुओं पे हँसता है,
कभी टॉफी के लिए जिद करता है,कभी टॉफी खाने को मना करता है
ये मन बड़ा ही दो रंग सा दिखता है।।

मन काफी विचरण करता है,अंदर ही अंदर लड़ता है झगड़ता है,
फिर भी खुद को खुश नहीं कर पाता है,पूरे जीवन भर मन बस खुशी के लिए ही,
बस इधर उधर विचरण करता रहता है।।
"मन विचरण.....

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©पूर्वार्थ
  
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#sukoo