तुम्हे ही मुझसे हमदर्दी नहीं, तो किसे इत्येलाह करूं। तुम्हारे सुकून की ख्वाहिश में, खुद से भी गिला करूं। तुम्हीं न समझो मेरा दर्द, तो और किससे वफा करूं। जो अश्क छुपा रखे हैं पलकों में, उन्हें कैसे रिहा करूं। जिन लफ्ज़ों में था तेरा जिक्र, अब उनका क्या सिलसिला करूं। तुम्हारी खामोशी है गवाही मेरी, तो शिकायत किससे भला करूं। ©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर तुम्हे ही मुझसे हमदर्दी नहीं, तो किसे इत्येलाह करूं। तुम्हारे सुकून की ख्वाहिश में, खुद से भी गिला करूं। तुम्हीं न समझो मेरा दर्द, तो और किससे वफा करूं।