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कागज़ पर अब सिमटते कहां है, उठा ले जो क़लम रुकते कह

कागज़ पर अब सिमटते कहां है,

उठा ले जो क़लम रुकते कहां है,

मुक़म्मल हो जाएं गज़ल हमारी,

कमबख्त, एक पर टिकते कहां है।

©Eshayar
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