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इसको नमन करो ये जो हाथों में तेरे धूल

      इसको नमन करो ये जो
      हाथों में तेरे धूल है
       जननी हमारी हम तो बस
       इसके महकते फूल हैं
              करती है पूरी ये सभी
               छोटी बड़ी जरूरतें
                 इसके बगैर कर नहीं
                  सकते हैं पूरी  हसरतें
    हम इसको पूजते नहीं
     तो यह हमारी भूल है
                 जब जब ये रूठ जाती है
                    तब हम तड़पते भूख से
                     देती है जिंदगी नयी
                      जब हम कभी भी सुख ते
       उगते कहीं गुलाब तो
        उगती कहीं बबूल है

©Sunil Kumar Maurya Bekhud
  # धूल की महिमा

# धूल की महिमा #कविता

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