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अँधेरे में चल पड़ी हूँ हाथों में उम्मीदों की मशाल थ

अँधेरे में चल पड़ी हूँ
हाथों में उम्मीदों की मशाल थामे,
माना कि अभी अँधेरा घना है
पर सुबह का सूरज भी तो है
अपनी बारी तो ठाने।

©Pushpa Sharma "कृtt¥"
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