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(4) ये मुनासिब नहीं, कि इश्क में भी जंग ही हो। इश

(4)

ये मुनासिब नहीं, कि इश्क में भी जंग ही हो।
इश्क है, इश्क ही है, कोई रियासत तो नहीं।।

जोर किसका, कहां चलता है, मुकद्दर पे कहीं।
सिफ़ाखाने में संवर जाए, तबीयत तो नहीं।।
 
                           संवेदिता

©Samvedita
  #मुखौटा (4)
#एहसास_दिल_के
#संवेदिता