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लड़की को लोग समझ नही पाते है पल्लव की डायरी परख कर

लड़की को लोग समझ नही पाते है

पल्लव की डायरी
परख कर,निभाना खूब आता है
आसमान लाख रिझाये
सौगाते चाँद सूरज की देकर
धरती का रुख समझ नही पाते है
अस्तिव का सृजन नारी के हाथो मे है
मनचलों और लम्पटों से नाता जोड़ना नही चाहती है
श्रृंगार भविष्य का लड़की की कौख से होना है
इसलिये वो हर तोहफों और प्यार पर लुभाती नही है
बीज जिसका अंकुर हो उसकी कौख में
उसे सभ्यताओ और संस्कार से पल्ल्वित करना चाहती है
मगर उसकी समझ को,लोग रुढ़ियों में जकड़ा बताते है
                                                          प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
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