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एहसासों की खामोशी समझती है मेरी मां, मैं कुछ कहता

एहसासों की खामोशी समझती है मेरी मां,
मैं कुछ कहता भी नहीं,पर सब कुछ समझती है मेरी मां,
मुहब्बत करती है बेपनाह वो मुझसे,
पर इज़हार ए इश्क नहीं समझती है मेरी मां।

©Gorakh Mirzaपुरी
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